शहर की तस्वीर बदल जाती अगर बन जाती “कक्ष समितियां

अगर गाज़ियाबाद नगर निगम कक्ष समितियों का गठन कर देता तो हमारे शहर की तस्वीर कुछ और ही होती। गली मोहल्लों में होने वाले विकास की माइक्रो प्लानिंग बनती। जनता को सड़क, खड़ंजा, नाली निर्माण, हैंडपंप जैसी समस्याओं से दो चार नहीं होना पड़ता। बजट का प्रस्ताव निचले स्तर से तैयार होता। हर काम पर कमेटी अपनी रिपोर्ट देती लेकिन यह सब सपना ही रहा।



हमारा गाज़ियाबाद के पब्लिशर और एडिटर-इन-चीफ अनिल कुमार गुप्ता द्वारा दायर एक आरटीआई के जवाब में गाज़ियाबाद नगर निगम ने स्वीकार किया है कि गाज़ियाबाद नगर निगम में अभी तक कक्ष समितियों का गठन नहीं किया है।



पहले से ही नगर निगम एक्ट में प्रावधान होने के बाद भी इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया गया। हो सकता है मेयर या नगर आयुक्त को लगा हो कि इससे तो उनकी पावर कम हो जाएगी। सालों पहले शासनादेश आने के बाद भी न तो मेयर ने और न ही नगरायुक्त ने गाज़ियाबाद नगर निगम में कक्ष समितियों के निर्माण में दिलचस्पी नहीं ली गई। सच पता नहीं क्या है लेकिन निगम सूत्रों का कहना है कि शासनादेश के बाद आपत्तियां मांगी गई थीं इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। वहीं एक पूर्व पार्षद का कहना है कि शासनादेश के बाद आपत्तियां मंगाने की बात हास्यास्पद है। सही मायनों में कक्ष समितियों के निर्माण के बाद महापौर और नगर आयुक्त के अधिकारों में कमी आने की आशंकाओं को चलते इस प्रावधान को कभी भी अमली जामा नहीं पहनाया गया।


हर समस्या का होता समाधान
उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा (6 क) के अंतर्गत नगर निगम में कक्ष समितियां बनाने का प्रावधान किया गया है। इस संदर्भ में 2012 में शासन ने नियमावली जारी कर तीन लाख से ऊपर की आबादी वाले नगरों में वार्डवार कक्ष समितियां बनाकर विकास कार्यों में जन सहयोग की भागीदारी बढ़ाने के निर्देश दिए थे। गाज़ियाबाद नगर निगम में भी 10 वार्डों को मिलाकर एक कक्ष समिति बनाने पर विचार किया गया था। कक्ष समिति में 10 पार्षदों पर एक अध्यक्ष और दो सदस्य मनोनीत किए जाने थे। नागरिक सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए हर महीने बैठक अनिवार्य थी। कक्ष समिति से आए प्रस्ताव पर ही बोर्ड से बजट जारी होता।