अगर बंद होता विश्वविद्यालय तो सबका था नुकसान

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को बंद करने से पहले पत्र लिखकर की गई कुलपति प्रो. तारिक मंसूर की अपील काम कर गई। इसके अलावा छात्रों और एएमयू बिरादरी को भी यह संकेत दिया गया कि अगर विश्वविद्यालय बंद हुआ तो किसको क्या नुकसान हो सकता है? माना जा रहा है कि इसके बाद ही बृहस्पतिवार को अचानक सब कुछ बदला-बदला नजर आया। कैंपस में कहीं से विरोध का स्वर उठा भी तो वह ज्यादा टिक नहीं सका। 


एएमयू से जुड़े सूत्रों की मानें तो प्रत्येक शैक्षिक सत्र में तकरीबन 20 फीसदी छात्र ऐसे होते हैं, जिन्हें वार्षिक परीक्षा और कक्षाओं की हाजिरी से कोई खास लेना देना नहीं है। कैंपस में जब भी अस्थिरता की बात होती है तो यही ग्रुप आगे भी आ जाता है। इनमें से बहुत से छात्रों पर इस समय मुकदमे दर्ज हैं। अगर विश्वविद्यालय बंद होता तो इनको अपने अपने गृह जनपदों में जाना होता।

इससे पुलिस को इन तक पहुंचना आसान बन सकता था। इसलिए ऐसे तत्वों का हित विश्वविद्यालय खुले रहने में ही था। इसके अलावा बुधवार को यही बात उठी कि अगर विश्वविद्यालय बंद हुआ तो स्टाफ के वेतन बंद करने की स्थिति न बन जाए। तो इससे एक और वर्ग विचार करने पर मजबूर हुआ। जो छात्र परीक्षा देना चाहते हैं वह पहले से ही विश्वविद्यालय की बंदी नहीं चाहते। इस तरह देखा जाए तो विश्वविद्यालय खुलने में ही सभी के हित पूरे हो रहे थे। कैंपस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यह बात बहुत तेजी से प्रसारित हुई। जिसके बाद माहौल बदला।